1.4 अनशन और नजरबन्दी

 

    नेताजी ब्रिटिश सरकार से अनुरोध करते हैं कि या तो अदालत में उन्हें दोषी साबित किया जाय, या फिर रिहा किया जाय। सरकार दोनों में से कुछ भी नहीं करती है।

अन्त में नेताजी आमरण अनशन कर देते हैं। वे बस जेल से बाहर आना चाहते हैं- जिन्दा या मुर्दा।

ग्यारहवें दिन उनकी तबियत खराब हो जाती है। सरकार जान रही है कि अगर जेल में नेताजी को कुछ हो गया, तो देश की जनता गुस्से में पागल हो जायेगी। सो, 5 दिसम्बर 1940 को उन्हें पैरोल पर रिहा किया जाता है और एल्गिन रोड स्थित उनके घर के बाहर बंगाल सी.आई.डी. के बासठ जवानों को नियुक्त कर दिया जाता है- कुछ सादे लिबास में और कुछ वर्दी में।

घर आकर नेताजी देश छोड़ने की योजना बनाने लगते हैं- उन्हें लगता है, विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटेन के शत्रु देशों से हाथ मिलाकर ही देश को आजाद कराया जा सकता है- और यह मौका फिर नहीं मिलने वाला है।

फॉरवर्ड ब्लॉक के एक नेता मोहम्मद शरीफ के कहने पर वे दाढ़ी रखनी शुरु कर देते हैं- ताकि अफगानिस्तान के कबायली इलाकों से गुजरने में परेशानी न हो।