भूमिका

   दो शब्द    

       नेताजी के जीवन का महत्वपूर्ण कालखण्ड है- 17 जनवरी 1941 से 18 अगस्त 1945 तक का। इस दौर में नेताजी से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से जुड़े बहुत-से ऐसे तथ्य तथा प्रसंग हैं, जिनके बारे में हम अक्सर कम ही जानते हैं। उन्हीं तथ्यों तथा घटनाक्रमों से देशवासियों को- खास तौर पर किशोर एवं युवा पीढ़ी को- परिचित कराने के लिए इस पुस्तक की रचना हुई है।

17 जनवरी 1941 से पहले के कुछ घटनाक्रमों को बहुत संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है। इसी प्रकार, 18 अगस्त 1945 के बाद के "सम्भावित" घटनाक्रमों पर भी कुछ अध्याय दिय्र गये हैं, जो "परिस्थितिजन्य साक्ष्यों" के विश्लेषण पर आधारित हैं। एक निष्कर्ष पर भी पहुँचने की कोशिश की गयी है कि आखिर नेताजी का क्या हुआ होगा!

लेखन की शैली कुछ हद तक ‘रिपोर्ताज’- जैसी रखने की कोशिश की गयी है, ताकि पढ़ते वक्त यह महसूस न हो कि हम सुदूर इतिहास की कोई बात जान रहे हैं; बल्कि ऐसा लगे कि घटनायें हमारे समय में, हमारे सामने घट रही हों।

आशा है, यह प्रयास अपने उद्देश्य में सफल रहेगा।

भूल-सुधार, नयी जानकारियों और अन्यान्य भारतीय भाषाओं में इस रचना के अनुवाद का स्वागत रहेगा।

23 जनवरी 2011  

                                                                                                                    -जयदीप शेखर

jaydeepshekhar@gmail.com


 

कुछ और शब्द:

नेताजी के दो दुर्लभ चित्रों पर...

  

ई 2006 में मुखर्जी आयोग की रपट सार्वजनिक होने के बाद मैं अपनी त्रैमासिक पत्रिका "मन मयूर" के प्रवेशांक के लिए एक लेख की तैयारी कर रहा था- 'नेताजी का अंतर्धान होना: एक पुनरावलोकन' मुझे नेताजी पर सामग्री एकत्र करते देख पिताजी को जैसे कुछ याद आया- और काफी खोज कर अपने संग्रह से निकालकर उन्होंने अखबार का एक कतरन मुझे दिया इस कतरन में छपे चित्र में जर्मन पनडुब्बी पर सवार नेताजी बैठे हैं- काला चश्मा लगाये और पीक कैप पहने हुए उनकी दाढ़ी बढ़ी हुई है बगल में सम्भवतः आबिद हसन बैठे हैं नेताजी के इस छायाचित्र को देखकर मैं अभिभूत रह गया पता नहीं, मेरे पिताजी ने इसे कब से सम्भाल कर रखा था किसी बँगला अखबार में छपे इस छायाचित्र के नीचे 'स्वत्वाधिकारी' के रुप में 'श्री शिशिर कुमार बसु' (नेताजी के भतीजे) का नाम छपा है बाद के दिनों में, इण्टरनेट खंगालते वक्त कभी ऐसी तस्वीर मेरी नजर से नहीं गुजरी अतः मैं नेताजी के इस छायाचित्र को उनका 'दुर्लभतम' छायाचित्र मानता हूँ और बहुत ही गर्व के साथ इसे इस पुस्तक के मुखपृष्ठ पर प्रस्तुत कर रहा हूँ

पुस्तक के अन्दर अफगानी पठान ‘जियाउद्दीन’ की वेश-भूषा में नेताजी की पेण्टिंग के जिस छायाचित्र का इस्तेमाल हुआ है, उसपर चित्रकार का नाम (हस्ताक्षर) एल.ए. जोशी लिखा है। यह फोटो पिताजी के अल्बम में सजा हुआ था- हमलोग बचपन से ही इसे देखते आ रहे थे। फोटो में ‘जियाउद्दीन’ की दाढ़ी नहीं दिखाई गयी थी- मैंने एक कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर की मदद से इनकी दाढ़ी बनाकर इसे रुपान्तरित किया है।

                                                        -ज.शे.

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