4.4 वह रहस्यमयी विमान यात्रा: सिंगापुर से ताईपेह तक
16 अगस्त 1945। 09:30 (या 10:30) बजे।
एक जापानी बमवर्षक विमान में नेताजी कर्नल हबीबुर्रहमान, कर्नल प्रीतम सिंह, एस.ए. अय्यर और जापानी दुभाषिए श्री निगेशी के साथ बैंकॉक के लिए रवाना होते हैं। उनके मंत्रीमण्डल के अन्य सदस्य- कर्नल गुलजारा सिंह, मेजर आबिद हसन, श्री देबनाथ दास इत्यादि एक दूसरे विमान में हैं।
विमान में कुछ खराबी है, और एक ढीली नली से रिसते पेट्रोल की महक यात्रियों को आती है।
शाम साढ़े तीन बजे विमान बैंकॉक पहुँचते हैं।
कुछ ही मिनटों में नेताजी के आने की खबर फैल जाती है और शाम से लेकर आधी रात के बाद तक नेताजी से मिलने वाले भारतीयों का ताँता लगा रहता है।
इसके बाद ही उन्हें कुछ जरूरी काम निपटाने का समय मिल पाता है।
भोर पाँच बजे नेताजी बिस्तर पर जाते हैं और घण्टे भर आराम करते हैं।
17 अगस्त 1945। 08:00 बजे।
दोनों विमान सभी यात्रियों को लेकर बैंकॉक से उड़ान भरते हैं और तीन घण्टों की संक्षिप्त उड़ान के बाद ग्यारह बजे सायगन के हवाई अड्डे पर उतरते हैं। (सायगन शहर का नाम अब हो-चि-मिन्ह सिटी है। यह वियेतनाम में है, जिसे उन दिनों फ्रेंच इण्डो-चायना कहा जाता था।)
सायगन का वातावरण फ्राँसीसी आक्रमण की अफवाहों से तनावग्रस्त है।
सायगन हवाई अड्डे से दो कारों में बैठकर नेताजी का दल नगर के बाहरी इलाके में स्थित श्री नारायण दास (आई.आई.एल. के आवास विभाग के सचिव) के घर पर जाता है।
मुश्किल से आधा घण्टा ही आराम किया होगा नेताजी ने कि जापानी सम्पर्क अधिकारी कियानो के आगमन के कारण उन्हें जगाया जाता है। कियानो की सूचना है कि सिर्फ नेताजी को लेकर जाने के लिए एक विमान हवाई अड्डे पर तैयार खड़ा है। विमान जा कहाँ रहा है- यह कियानो नहीं बताते। मगर उनका कहना है कि नेताजी को तुरन्त चलना चाहिए- समय बिल्कुल नहीं है।
नेताजी किसी अनजाने गंतव्य स्थान पर जाने के लिए तैयार नहीं हैं।
कियानो भागे-भागे जाते हैं और अपने उच्च अधिकारियों- जेनरल ईशोदा, श्री हाचैया और फील्ड मार्शल तेराउचि के स्टाफ अधिकारी (सम्भवतः कर्नल टाडा) को लेकर आते हैं।
बन्द कमरे में ये सभी नेताजी के साथ बैठक करते हैं- जाहिर है, नेताजी को गुप्त रुप से मंचुरिया पहुँचाने की जो योजना तेराउचि ने बनायी है, उसकी जानकारी नेताजी को दी जाती है। कर्नल हबिब भी बैठक में शामिल हैं।
थोड़ी देर बाद जापानियों को कमरे में छोड़ नेताजी और हबिब बाहर आते हैं। नेताजी ईशारे से हबिब, आबिद, देबनाथ और अय्यर को एक दूसरे कमरे में बुलाते हैं और जापानियों की योजना की जानकारी देते हैं।
“कुछ ही मिनटों में एक विमान उड़ान भरने वाला है,” नेताजी साथियों से पूछते हैं, “जापानियों का कहना है कि उसमें एक ही सीट उपलब्ध है... क्या मुझे अकेले जाना चाहिए?”
थोड़े विचार-विनिमय के बाद तय होता है कि जापानियों से एक और सीट का इन्तजाम करने के लिए कहा जाय। विमान या नेताजी कहाँ जा रहे हैं, इसपर कोई सवाल नहीं उठाता।
“हमने पूछा नहीं और उन्होंने बताया नहीं,” अय्यर अपनी किताब (Unto him a witness) में लिखते हैं, “लेकिन हम जानते थे, और नेताजी भी यह जानते थे कि हम जानते हैं। विमान को मंचुरिया जाना था।”
जापानियों से फिर थोड़ी बातचीत होती है और उसके बाद नेताजी साथियों को सूचित करते हैं- एक और सीट है, और कर्नल हबिब उनके साथ चल रहे हैं।
समय बिल्कुल नहीं है- नेताजी और हबिब कार में बैठकर हवाई अड्डे के लिए रवाना हो जाते हैं।
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सायगन हवाई अड्डा। 17:30 बजे।
जापानी भारी बमवर्षक विमान- मित्सुबिशी के.आई.-21 आर्मी टाईप-97-2-सैली- उड़ान के लिए तैयार खड़ा है। यह विमान मनीला से आया है। इसके यात्रियों की सूची इस प्रकार है:
1. मेजर ताकिजावा, 3र्ड एयर फोर्स, पायलट
2. वारण्ट ऑफिसर आयोगी, असिस्टेण्ट पायलट
3. सार्जेण्ट ओकिता, नेवीगेटर
4. एक एन.सी.ओ. (नॉन कमीशंड ऑफिसर) तोमिनागा, रेडियो ऑपरेटर
5. एक एन.सी.ओ., जिसका नाम नहीं पता, गन ऑपरेटर
6. लेफ्टिनेण्ट जेनरल सिदेयी, चीफ ऑव स्टाफ, बर्मीज आर्मी कमाण्ड
7. लेफ्टिनेण्ट कर्नल साकाई, स्टाफ ऑफिसर
8. लेफ्टिनेण्ट कर्नल शिरो नोनोगाकी, स्टाफ ऑफिसर, जापान एयर फोर्स
9. मेजर तारो कोनो, स्टाफ ऑफिसर, जापान एयर फोर्स
10. मेजर ईवाओ ताकाहाशी, स्टाफ ऑफिसर
11. कैप्टन केयिकिची अराई, एयर फोर्स इंजीनियर
अब इस सूची में दो नाम और जुड़ जाते हैं:
12. सुभाष चन्द्र बोस, आई.एन.ए. चीफ
13. कर्नल हबिबुर्रहमान खान, एडजुटैण्ट, आई.एन.ए.
विमान में काफी साजो-सामान भी लदा है।
नेताजी और हबिब सहित कुल तेरह लोगों को लेकर विमान सायगन से उड़ान भरता है।
तूरेन। 19:45 बजे।
तूरेन वियेतनाम का ही एक शहर है। विमान यहाँ उतरता है और रात्रि विश्राम करता है।
नेताजी तथा अन्य यात्री होटल मोरिम में ठहरते हैं। (तूरेन शहर का नाम अब दा-नांग है।)
सायगन में एयरबोर्न होने से पहले विमान को पूरे रन-वे का इस्तेमाल करना पड़ा था। जाहिर है, विमान में माल ज्यादा लदा है। सो, तूरेन में 12 मशीनगन तथा कुछ गोला-बारूद उतारकर विमान को 600 किलो हल्का किया जाता है।
18 अगस्त। 05:30 बजे। (या 07:00 बजे?)
सभी 13 यात्रियों को लेकर विमान तूरेन से उड़ान भरता है।
ताईपेह। 14:00 बजे।
बहुत ही अच्छे मौसम में फारमोसा द्वीप के ताईपेह शहर के निकट ताईहोकू हवाई अड्डे पर विमान उतरता है।
विमान में ईंधन भरा जाता है और सभी यात्री सैण्डविच तथा केले का हल्का भोजन करते हैं।
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इसके बाद के घटनाक्रम के दो संस्करण हैं:
1. गवाहों के बयानों पर आधारित घटनाक्रम, जिसमें विमान को दुर्घटनाग्रस्त और नेताजी को उसमें मृत बताया जाता है; और
2. परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित घटनाक्रम, जिसके अनुसार विमान मंचुरिया पहुँचा था और नेताजी (कुछ वर्षों तक) सोवियत संघ में ही थे।
न्याय की दुनिया में कहते हैं कि गवाह कुछ कारणों से झूठ बोल सकते हैं, मगर परिस्थितिजन्य साक्ष्य कभी झूठ नहीं बोलते!