5.6 यह देश और इसकी नियति

 

स देश के साथ नियति ने बहुत सारे छल किये हैं। संक्षेप में कुछ का जिक्र किया जा रहा है:- 

·         दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दी में जब देश के पश्चिमोत्तर प्रान्त में आक्रमण हो रहे थे, तब सीमा पर किलेबन्दी करने के बजाय हम 'खजुराहो' में अन्तिम कुछ मन्दिरों के नींव रखने में व्यस्त थे।

·         शेरशाह सूरी को शासन के लिए सिर्फ पाँच साल मिलते हैं।

·         दारा शिकोह युद्ध जीतते-जीतते औरंगजेब से हार जाता है।

·         पलासी की मोर्चेबन्दी में रात में बारिश होती है- खुले में मोर्चा बाँधे सिराजुद्दौला की सेना का गोला-बारूद भींग जाता है, जबकि आम के बगान में मोर्चा बाँधे अँग्रेजों के गोला-बारूद भींगने से बच जाते हैं।

·         1922 में 'चौरी-चौरा' के कारण आजादी मिलते-मिलते रह जाती है।

·         1939 में नेताजी को काँग्रेस के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देना पड़ता है।

·         1942 में जर्मन सेना की मदद से, 1944 में जापानी सेना की मदद से और इसके बाद सोवियत सेना की मदद से नेताजी दिल्ली नहीं पहुँच पाते हैं।

इन सबका परिणाम यह होता है कि देश लम्बे समय तक गुलाम बना रहता है और आजाद होने के बाद भी विश्व के मानचित्र में ऊँचा स्थान नहीं बना पाता।

 (प्रसंगवश : मुगल-शासक भले बाहर से आये थे, मगर वे ‘भारतीय’ बन गये और देश का धन बाहर नहीं ले गये; इसके मुकाबले अँग्रेजों ने यहाँ के उद्योग-धन्धों को चौपट किया, विश्व-व्यापार में देश की हिस्सेदारी को कम किया और यहाँ से धन ले जाकर ब्रिटेन का औद्योगीकरण किया। अँग्रेजों ने भारत को रेल दिया, मगर उनका मुख्य उद्देश्य था- देश के अन्दरुनी भागों से कच्चे माल को कम लागत पर बन्दरगाहों तक पहुँचाना; अँग्रेजों ने देश को टेलीग्राम दिया, मगर उनका मुख्य उद्देश्य था- 1857 जैसी क्राँति फिर होने पर सेना का बेहतर संचालन करना; अँग्रेजों ने देश में ढेर सारे निर्माण करवाये, मगर इस उम्मीद में कि अभी 500-1000 वर्षों तक भारत उनका उपनिवेश बना रहेगा।)