5.1 (क): अतिरिक्त जानकारी: स्तालिन का अन्त

    

         स्तालिन को जानने वाले बहुत-से लोगों का मानना है कि वे हिटलर से भी ज्यादा निष्ठुर और निर्दय थे। उन्हें एक से दो करोड़ लोगों की मौत का जिम्मेदार ठहराया जाता है। हिटलर ने यातना शिविरों के ‘गैस चेम्बर’ में लोगों को मरवाया था, तो स्तालिन के पास बर्फीले सायबेरिया का ‘निर्वासन’ था। 

मुसोलिनी जनता के हाथों मारे गये थे; हिटलर को आत्महत्या करनी पड़ी थी; फिर क्या ये तीसरे तानाशाह– स्तालिन- शान्ति से स्वाभाविक मौत मरे? शायद नहीं।

28 फरवरी 1953 को उनके उत्तराधिकारी ख्रुश्चेव और एन.के.वी.डी. (गुप्त पुलिस) के मुखिया बेरिया शाम 16:00 बजे उन्हें छोड़कर जाते हैं।

अगली सुबह 1 मार्च को 10:00 बजे तक जब उनके कमरे का दरवाजा नहीं खुलता है, तो गार्ड चिन्तित होते हैं, मगर किसी की मजाल नहीं है कि उनके कमरे में झाँक ले!

जो भी हो, रात 22:00 बजे उन्हें कमरे में फर्श पर पड़े पाया जाता है- अपने ही पेशाब में लथपथ। उनकी टूटी घड़ी 18:30 का समय बता रही थी। यानि उन्होंने अपने हिस्से का कष्ट भोग लिया था!

उन्हें चिकित्सा पहुँचाने में सम्भवतः जानबूझ देर की जाती है- अगली सुबह 07:00 से 10:00 बजे के बीच चिकित्सा मुहैया करवायी जाती है। डॉक्टर पाते हैं कि उनपर पक्षाघात का असर है, साँस लेने में तकलीफ है और वे रक्त की उल्टियाँ कर रहे हैं।

स्तालिन ने अपने पुराने डॉक्टरों को जेल में डलवा रखा था। जब नये डॉक्टर उनसे सलाह लेने जाते हैं, तो स्वाभाविक रुप से वे गलत ईलाज की सलाह देते हैं।

5 मार्च 1953 को 21:50 तक तड़पने के बाद स्तालिन प्राण त्यागते हैं। उनकी बेटी का कथन:

उनकी मौत का दर्द भयानक था। हम देख रहे थे और उनका दम घुट रहा था।