4.5 वह रहस्यमयी विमान दुर्घटना: गवाह जो कहते हैं
निम्नलिखित घटनाक्रम जापानी सैन्य अधिकारियों, नानमोन सैन्य अस्पताल के डॉक्टरों तथा मुख्यरुप से कर्नल हबिबुर्रहमान के बयानों पर आधारित है:-
10 अगस्त 1945 को सोवियत संघ ने जापान के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी और उसके सैनिक मंचुरिया में प्रवेश कर गए। उनसे निपटने के लिए 17 अगस्त को ले. जेनरल सिदेयी तथा कुछ अन्य सैन्य अधिकारियों की नियुक्ति मंचुरिया के दाईरेन नामक स्थान में की गयी। ये अधिकारी साजो-सामान के साथ मनीला से दाईरेन जा रहे थे।
उधर 15 अगस्त को जापान के आत्मसमर्पण के बाद बदली हुई परिस्थितियों में जापान सरकार से सलाह-मशविरा करने तथा धन्यवाद ज्ञापन के लिए नेताजी को टोक्यो जाना था। इसलिए सिदेयी अपना विमान लेकर मनीला से पहले सायगन आ गये और नेताजी को कर्नल हबिबुर्रहमान के साथ विमान में बिठा लिया गया। अन्तिम रुप से विमान को मंचुरिया से टोक्यो ही जाना था। सायगन से उड़कर और तूरेन में रात्रि विश्राम कर विमान 18 अगस्त को दोपहर 14:00 बजे ताईहोकू हवाई अड्डे पर उतरा।
ताईहोकू हवाई अड्डा
ताईहोकू हवाई अड्डे पर विमान में ईंधन भरा जाता है और यात्रीगण जलपान करते हैं।
उड़ान से पहले पायलट, मेजर कोनो और हवाई अड्डे के अनुरक्षण (मेण्टेनेन्स) अधिकारी कैप्टन नाकामुरा विमान की संक्षिप्त जाँच करते हैं। मेजर कोनो को बाँए इंजन में एक खराबी दीखती है, मगर इसे नजरअन्दाज कर विमान को वे उड़ान भरने योग्य घोषित करते हैं। वैसे भी, सूचना है कि सोवियत सैनिक मंचुरिया के निकट आ रहे हैं, अतः वहाँ यथाशीघ्र पहुँचना है।
सभी 13 यात्री (सूची पिछले अध्याय में है) विमान में सवार होते हैं।
एक बयान के अनुसार, आधा घण्टा रुकने के बाद विमान ने 14:30 या 14:35 पर उड़ान भरी; जबकि एक दूसरे बयान के मुताबिक विमान वहाँ दो घण्टे रुका था, जिससे उड़ने का समय बनता है- 16:00 बजे।
विमान टैक्सिंग करते (पहियों पर चलते) हुए 890 मीटर लम्बी हवाई पट्टी के एक किनारे जाकर वापस मुड़ता है और फिर, वह दौड़ना शुरु करता है।
आम तौर पर भारी बमवर्षक विमान आधी हवाई-पट्टी पर ही हवा में उठ जाते हैं, मगर यह विमान हवाई-पट्टी का तीन-चौथाई पार करके भी जमीन से नहीं उठता है।
फिर विमान हवा में उठता है और खड़ी उड़ान भरते हुए ऊपर जाने लगता है।
अचानक तेज धमाका होता है और विमान बाँयी ओर झुक जाता है। पोर्ट (बाँया) इंजन प्रोपेलर (पंखे) सहित जमीन पर आ गिरता है।
विमान जमीन की ओर गोता खाता है।
हवाई अड्डे की चहारदीवारी के 10 से 20 मीटर की दूरी पर विमान जमीन से टकराता है और विमान में आग लग जाती है।
नानमोन सैन्य अस्पताल
हवाई अड्डे से कुछ दूरी पर स्थित नानमोन सैन्य अस्पताल को पहले तो सूचना मिलती है और फिर, सभी जले तथा घायल यात्रियों को वहाँ लाया जाता है।
एक अच्छी कद-काठी वाले भारतीय की ओर ईशारा करके चिकित्सा अधिकारी कैप्टन योशिनी को बताया जाता है, “ये काटा-काना हैं, महान भारतीय नेता, इन्हें बचाने की कोशिश की जाय।”
‘काटा-काना’ यानि ‘चन्द्र बोस’ सर से पाँव तक जले हुए हैं।
डॉ. टी सुरुता तथा दर्जन भर जापानी और फारमोसी नर्स डॉ. योशिनि की मदद के लिए अस्पताल में मौजूद हैं। डॉ. सुरुता नेताजी की पट्टियाँ करते हैं और डॉ. योशिनी विटा-कैम्फर की दो खुराक तथा डिजिटामाईन के दो इंजेक्शन देते हैं- उनके हृदय को स्थिर करने के लिए। इंफेक्शन से बचाने के लिए रिंगर सोल्यूशन के 500 सी.सी. के तीन इण्ट्रावेनस इंजेक्शन भी योशिनी नेताजी को देते हैं।
प्रारम्भ में ड्रेसिंग रूम में ही नेताजी को चिकित्सा दी जाती है। बेहतर ईलाज के लिए उन्हें 2 नम्बर वार्ड में रखा जाता है। हबिबुर्रहमान भी उसी वार्ड में हैं।
17:00 बजे अस्पताल के ही एक जापानी सैनिक का खून लेकर नेताजी को चढ़ाया जाता है- ताकि उनके हृदय पर दवाब कम पड़े।
ऐसा लग रहा है कि नेताजी पर ईलाज का असर हो रहा है। वे होश में हैं और कई बार पानी भी माँगते हैं। नेताजी को अस्पताल के स्टाफ के साथ वार्तालाप में आसानी हो, इसके लिए लिए दुभाषिए जुकी नाकामुरा को भी बुला लिया गया है। नाकामुरा नेताजी और हबिब से परिचित हैं। नेताजी ताईपेह में जब भी रुकते थे, नाकामुरा उनके साथ होते थे।
समय 19:30।
डॉ. सुरुता पाते हैं कि नेताजी की नब्ज गिर रही है। तुरन्त वे विटा-कैम्फर और डिजिटामाईन के इंजेक्शन देते हैं; मगर नब्ज का धीमा पड़ना जारी है।
23:00।
नेताजी की मृत्यु हो जाती है।
इस वक्त कमरे में 7 लोग मौजूद हैं- डॉ. योशिनी, डॉ. टी. सुरुता, कर्नल हबिबुर्रहमान, जे. नाकामुरा (दुभाषिया), काजो मित्सुई (चिकित्सा अर्दली) और दो नर्स।
(इस समय को याद कर लीजिये- नेताजी की मृत्यु का यह समय डॉ. योशिनी ने ब्रिटिश जाँच एजेन्सी के सामने दर्ज कराया था- 19 अक्तूबर 1946 को, हाँग-काँग के स्टेनली जेल में। तब वे ब्रिटिश-अमेरीकी सेना के बन्दी थे।)
दुर्घटनास्थल
· लेफ्टिनेण्ट जेनरल सिदेयी और पायलट मेजर ताकिजावा की मृत्यु घटनास्थल पर होती है, जबकि नेताजी, को-पायलट वारण्ट ऑफिसर आयोगी तथा दो अन्य (दोनों नन-कमीशण्ड ऑफिसर- रेडियो ऑपरेटर और गनर) की मृत्यु अस्पताल में होती है। (याद रखियेगा- नेताजी के अलावे 5 और लोगों की मृत्यु की बात गवाह बताते हैं।)
· 7 लोग दुर्घटना में जीवित बचते हैं। लेफ्टिनेण्ट कर्नल नोनोगाकी, जो कि टरेट् पर बैठे थे, विमान से बाहर आकर जमीन पर गिरते हैं- बिना चोट खाये। लेफ्टिनेण्ट कर्नल साकाई, मेजर ताकाहाशी और कैप्टन अराई विमान के जमीन से टकराते समय तो बेहोश हो जाते हैं, मगर बाद में उन्हें होश आ जाता है- उन्हें मामूली खरोचें आती हैं और वे मामूली रुप से झुलसते हैं।
· जीवित बचे मेजर कोनो याद करते हैं कि विमान के गिरते समय पेट्रोल टैंक खुल गया था और वह उनके तथा नेताजी के बीच आ गिरा था, जिससे वे नेताजी को नहीं देख पा रहे थे। हाँ, ले. जेनरल सिदेयी को उन्होंने देखा, जिनके सर के पिछले हिस्से पर जख्म था।
· स्टीयरिंग गीयर पर गिरने के कारण मेहर ताकिजावा का चेहरा और कपाल कट गया था, जबकि वारण्ट ऑफिसर आयोगी के सीने पर चोटें आयी थीं।
· कर्नल हबिबुर्रहमान याद करते हैं कि जमीन पर गिरने के बाद विमान का अगला हिस्सा टूट कर अलग हो गया और उसमें आग लग गयी। नेताजी हबिब की ओर मुड़कर बोले, “सामने की ओर से बाहर निकलो, पीछे रास्ता नहीं रहा।” विमान का दरवाजा सामान आदि से जाम हो गया था। सो, नेताजी आग से होकर निकले और हबिब ने उनका अनुसरण किया। नेताजी की पैण्ट में आग लगती है और सारे शरीर में फैल जाती है। हबिब उनके कपड़े हटाने में अपने हाथ जला बैठते हैं। फिर हबिब नेताजी को जमीन लुढ़काते हैं- आग बुझाने के लिए। तब तक नेताजी गम्भीर रुप से जल चुके हैं।
· नेवीगेटर सार्जेण्ट ओकिता की रीढ़ की हड्डी को नुकसान पहुंचता है। उसकी पीठ पर एक लम्बा जख्म बनता है। अस्पताल में कुछ समय बिताने के बाद उसे सितम्बर’ 47 में छुट्टी मिलती है।
दुर्घटना के कारण
· अधिकतम 9 के स्थान पर विमान में 13 लोग सवार थे।
· ताईपेह हवाई अड्डा छोटा था, बाहर ईंट भट्ठी की चिमनियाँ थीं।
· विमान को मंचुरिया पहुँचने की जल्दी थी।
· एक ईंजन की खराबी को नजरअन्दाज किया गया।
· पायलट द्वय ताईहोकू हवाई अड्डे के लिए नये थे।
· (जापान का) फारमोसा आर्मी कमान अव्यवस्थित हो चला था।
ताईपेह नगरपालिका
जापान सरकार नेताजी की मृत्यु को गुप्त रखने का आदेश देती है- मीडिया को खबर नहीं दी जाती।
22 अगस्त को नेताजी के शव को ताईपेह नगरपालिका लेकर जाया जाता है- अन्तिम संस्कार के लिए अनुमतिपत्र प्राप्त करने के लिए। शव लेकर आये हैं- हबिबुर्रहमान और कुछ जापानी सैन्य अधिकारी। शव अस्पताल के कम्बल से भली-भाँति ढँका हुआ है।
(याद रखियेगा- मृत्यु 18-19 अगस्त की रात हुई बतायी जाती है और अन्तिम संस्कार 22 अगस्त को होने जा रहा है।)
नगरपालिका के स्वास्थ्य एवं स्वच्छता विभाग को ‘शव’ का ‘मृत्यु प्रमाणपत्र’ दिखाया जाता है, जिसपर डॉ. योशिनी और डॉ. सुरुता के हस्ताक्षर हैं।
‘मृत्यु प्रमाणपत्र’ के ब्यौरे इस प्रकार हैं:-
मृतक का नाम- इचिरो ओकुरा
जन्मतिथि- 1900 अप्रैल 9
मृत्यु का कारण- कार्डियाक अरेस्ट
पेशा- सैनिक, टेम्पोररी, ताईवान गवर्नमेण्ट मिलिटरी
मृत्यु की तारीख- 19 अगस्त 4:00 अपरान्ह
अन्तिम संस्कार के लिए अनुमति की तिथि- 21 अगस्त 1945
अन्तिम संस्कार की तिथि- 22 अगस्त 1945
अन्तिम संस्कार के लिए अनुरोधकर्ता- डॉ. थानिओशी योशोमी; चिकित्सक
चूँकि मृत्यु प्रमाणपत्र में कहीं भी “काटा-काना” का जिक्र नहीं है, इसलिए विभाग के अधिकारी इसे गम्भीरता से नहीं लेते और प्रमाणपत्र को दो कर्मचारियों के हवाले कर देते हैं, जिनकी ड्यूटी है- प्रमाणपत्र के हिसाब से ‘शव’ की जाँच करना।
अब इन दोनों मामूली कर्मचारियों को अलग ले जाकर जापानी सैन्य अधिकारी बताते हैं- यह महान भारतीय नेता काटा-काना का शव है, गोपनीय कारणों से इनका अन्तिम संस्कार ‘इचिरो ओकुरा’ के छद्म नाम से किया जा रहा है और जापान सरकार नहीं चाहती है कि इनके शव की जाँच की जाय।
दोनों कर्मचारी मान जाते हैं और (कम्बल हटाकर) शव की जाँच नहीं करते। इस प्रकार अन्तिम संस्कार के लिए ‘अनुमति पत्र’ स्वास्थ्य एवं स्वच्छता विभाग से हासिल कर लिया जाता है।
शवदाहगृह
शवदाह गृह में भी फारमोसी (ताईवानी) कर्मचारियों को कुछ समझाया जाता है और वे भी शव पर से अस्पताल के कम्बल को नहीं हटाते।
कम्बल में ढके-ढके ही शव को भट्ठी में भेज दिया जाता है।
अगली सुबह ये ही अधिकारी शवदाह गृह में फिर आते हैं और जापानी परम्परा के अनुसार अस्थिभस्म इकट्ठा करते हैं।
बाद में इस भस्म को टोक्यो के रेन्कोजी मन्दिर में रखा जाता है।