3.4 आरजी हुकुमत-ए-आजाद हिन्द

    

     नेताजी की अगली योजना है- अन्तरिम भारत सरकार के गठन की। इसके लिए पूर्वी तथा दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का, और वहाँ रहने वाले (कोई तीस लाख) भारतीयों का समर्थन आवश्यक है। और हाँ, सरकार गठन के लिए कुछ और धन चाहिए। (नेताजी जापान पर कम-से-कम निर्भरता चाहते हैं। वैसे भी, करार के अनुसार, देश की आज़ादी के बाद नेताजी जापान द्वारा आज़ाद हिन्द फौज़ पर किये गये खर्च को चुकाने वाले हैं- जापान का यह खर्च एक ऋण है।)

तो नेताजी 27 जुलाई (1943) को सतरह दिनों की यात्रा पर निकलते हैं।

सबसे पहले वे रंगून पहुँचते हैं, जहाँ उन्हें भव्य स्वागत मिलता है। 1 अगस्त को वे बर्मी स्वतंत्रता समारोह में शामिल होते हैं।

रंगून से वे बैंकॉक जाते हैं, जहाँ वे थाई प्रधानमंत्री (पिल्बुल संग्राम) से मिलते हैं। थाईलैण्ड से वे नैतिक समर्थन हासिल करते हैं और भारतीय तो उनकी जयजयकार के लिए टूट पड़ते हैं।

इसके बाद वे उड़ान भरते हैं सायगन (वियेतनाम के इस नगर का नाम अब हो-चि-मिन्ह सिटी है) के लिए, जहाँ वे भारतीयों को सम्बोधित करते हैं। सिंगापुर लौटकर वे थोड़ा आराम करते हैं और फिर, पेनांग (मलेशिया) के लिए उड़ान भरते हैं, जहाँ पन्द्रह हजार भारतीयों की सभा को वे सम्बोधित करते हैं।

हर जगह नेताजी अपने भाषण से लोगों को घण्टों मंत्रमुग्ध बनाये रखते हैं; और भाषण समाप्त होने पर लोग मंच की ओर दौड़ पड़ते हैं- जो कुछ उनके पास है, उसे समर्पित करने के लिए।

दक्षिण-पूर्व एशिया के हर शहर, हर नगर में यह दृश्य दुहराया जाता है। एक महात्मा के तरह नेताजी हजारों लोगों के सामने खड़े होकर देश की आज़ादी की बात करते हैं, और फिर छोटे-बड़े दूकानदार, व्यापारी, महिलाएँ, सभी उनके सामने रुपयों और गहनों की ढेर लगा देते हैं, ताकि उनका नेता अपनी योजना में सफल हो। कुल बीस लाख डॉलर जमा होते हैं।  

इस प्रकार, जुलाई से अक्तूबर तक नेताजी जनसमर्थन तथा धन जुटाने और सेना के पुनर्गठन में व्यस्त रहते हैं।

21 अक्तूबर 1943 के दिन सिंगापुर के कैथी सिनेमा हॉल में नेताजी आरज़ी हुकुमत-ए-आज़ाद हिन्द की स्थापना की घोषणा करते हैं। स्वाभाविक रुप से नेताजी स्वतंत्र भारत की इस अन्तरिम सरकार (Provisional Government of Free India) के प्रधानमंत्री, युद्ध एवं विदेशी मामलों के मंत्री तथा सेना के सर्वोच्च सेनापति चुने जाते हैं। सरकार के प्रधान के रुप में नेताजी शपथ लेते हैं-  

ईश्वर के नाम पर मैं यह पवित्र शपथ लेता हूँ कि मैं भारत को और अपने अड़तीस करोड़ देशवासियों को आजाद कराऊँगा। मैं सुभाष चन्द्र बोस, अपने जीवन की आखिरी साँस तक आजादी की इस पवित्र लड़ाई को जारी रखूँगा। मैं सदा भारत का सेवक बना रहूँगा और अपने अड़तीस करोड़ भारतीय भाई-बहनों की भलाई को अपना सबसे बड़ा कर्तव्य समझूँगा। आजादी प्राप्त करने के बाद भी, इस आजादी को बनाये रखने के लिए मैं अपने खून की आखिरी बूँद तक बहाने के लिए सदा तैयार रहूँगा।

शपथ लेनेवाले सरकार के मंत्री परिषद के सदस्यगण हैं- डॉ. लक्ष्मी विश्वनाथन (बाद में कैप्टन और फिर ले. कर्नल) (महिला संगठन); श्री एस.ए. अय्यर (प्रसारण एवं प्रचार); ले. कर्नल (बाद में मेजर जेनरल) ए.सी. चैटर्जी (वित्त); ले. कर्नल (बाद में मेजर जेनरल) अज़ीज़ अहमद (सेना); ले. कर्नल (बाद में कर्नल) एन.एस. भगत; ले. कर्नल (बाद में मेजर जेनरल और चीफ ऑव जेनरल स्टाफ) जे.के. भोंसले; ले. कर्नल (बाद में कर्नल) गुलजारा सिंह; ले. कर्नल (बाद में मेजर जेनरल) एम.जे. कियानी; ले. कर्नल (बाद में मेजर जेनरल) ए.डी. लोकनाथन; ले. कर्नल (बाद में कर्नल) एहसान कादिर; ले. कर्नल (बाद में मेजर जेनरल) शाहनवाज़ खान; ले. कर्नल (बाद में कर्नल) सी.एस. ढिल्लों; श्री ए.एन. सहाय (सचिव); मेसर्स करीम गाँधी, देबनाथ दास, डी.एम. खान, ए. येलप्पा, जे. थिवी और सरदार ईशर सिंह (परामर्शदाता); श्री ए.एन. सरकार (कानूनी सलाहकार); और... नेताजी के अनुरोध पर ‘सर्वोच्च परामर्शदाता’ बनना सहर्ष स्वीकार करनेवाले- स्वयं रासबिहारी बोस!      

इस अन्तरिम आजाद हिन्द सरकार को जल्दी ही नौ राष्ट्रों की स्वीकृति मिल जाती है- जापान, जर्मनी, इटली, इण्डिपेंडेण्ट स्टेट ऑव क्रोशिया, नानजिंग की वाँग जिंगवेई की सरकार (नानकिंग चायना), थाईलैण्ड (स्याम), बर्मा की अस्थायी सरकार, मंचूकुओ और जापान नियंत्रित फिलीपीन्स।

आयरिश स्वतंत्र राष्ट्र के राष्ट्रपति एमोन डे वालेरा (Eamon de valera) हार्दिक बधाई भेजते हैं। हाल में जाहिर हुआ है कि सोवियत संघ के साइबेरिया में आजाद हिन्द सरकार का दूतावास था।

इस सरकार की अपनी मुद्रा, डाक टिकट, न्यायालय, बैंक तथा संविधान होते हैं।

सुख-चैन की बरखा बरसे, भारत भाग है जागा... को राष्ट्रगीत बनाया जाता है। (इसके रचयिता हुसैन को नेताजी दस हजार डॉलर का ईनाम देते हैं!)

उर्दू-मिश्रित हिन्दी- ‘हिन्दुस्तानी’- को राष्ट्रभाषा बनाया जाता है, जिसे रोमन लिपि में लिखा जायेगा।

तिरंगे पर चरखे के स्थान पर छलाँग भरते शेर को अंकित कर राष्ट्रध्वज बनाया जाता है।

अपने सैनिकों और स्वयंसेवकों के लिए नेताजी सैन्य शिक्षा के साथ-साथ ‘नैतिक शिक्षा’ की भी व्यवस्था करते हैं- क्योंकि इन्हीं सैनिकों/स्वयंसेवकों को आजाद भारत का नागरिक बनना है। नेताजी अपनी सेना और सरकार में किसी भी प्रकार के भेद-भाव की गुँजाईश नहीं रखते।

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सरकार गठन के हफ्ते भर बाद (अक्तूबर के अन्त में) नेताजी तोजो से मिलने तथा ‘ग्रेटर ईस्ट एशिया कॉ-प्रॉस्पेरेटि स्फेयर’ के कॉन्फ्रेन्स में भाग लेने टोक्यो पहुँचते हैं। चूँकि तकनीकी रुप से भारत इस क्षेत्र से बाहर है, इसलिए नेताजी को एक पर्यवेक्षक के रुप में आमंत्रित किया जाता है।

यहाँ नेताजी उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद से मुक्त एक नये एशिया के गठन पर प्रभावशाली भाषण देते हैं।

इसी कॉन्फ्रेन्स में तोजो अण्डमान-निकोबार का शासन-प्रशासन आज़ाद हिन्द सरकार को सौंपने की घोषणा करते हैं। (अब तक वहाँ जापानी नौसेना का आधिपत्य है।)

दिसम्बर में एक समारोह में सत्ता-हस्तांतरण होता है। अण्डमान और निकोबार के नये नाम ‘स्वराज’ और ‘शहीद’ रखे जाते हैं। ले. कर्नल ए.डी. लोकनाथन को आजाद हिन्द सरकार की ओर से यहाँ का गवर्नर जनरल नियुक्त किया जाता है।

नेताजी भी समारोह में भाग लेने आते हैं। मगर जापानी सैनिक स्थानीय लोगों को नेताजी से मिलने नहीं देते। इससे जापानियों द्वारा स्थानीय लोगों पर ढाये गये अत्याचारों की बातें नेताजी तक नहीं पहुँच पाती।

बाद में भी जापानी नौसेना लोकनाथन को स्वतंत्र रुप से काम करने नहीं देती। अण्डमान में आई.आई.एल. के नेता डा. दीवान सिंह की मृत्यु जापानियों की यातना से ही होती है।

अन्त में, तंग आकर लोकनाथन रंगून अपने मुख्यालय लौट जाते हैं। (युद्ध की तैयारियों के लिए आजाद हिन्द सरकार का मुख्यालय सिंगापुर से रंगून स्थानांतरित किया गया है और ऐसे भी, लोकनाथन की जरुरत अभी मुख्यालय में है; क्योंकि जल्द ही ऑपरेशन- यू शुरु होने वाला है... !)