2.4 पूर्व में जापान की बादशाहत

     1937 (7 जुलाई) से ही चीन के साथ युद्धरत जापान के साथ पश्चिमी देश व्यापार में कटौती करते जा रहे हैं

27 सितम्बर 1940 को ‘त्रिपक्षीय समझौते’ के तहत जापान ‘धुरी राष्ट्र’ में शामिल होकर जर्मनी तथा इटली का मित्र बन जाता है।

जुलाई 41 में जापान के साथ (अन्य) पश्चिमी देश व्यापार बन्द कर देते हैं।

जापान को कच्चे माल की- खासकर पेट्रोलियम की, सख्त जरुरत है। जाहिर है, तेल और खनिज से समृद्ध दक्षिण-पूर्वी एशिया और ईस्ट इण्डीज पर वह आधिपत्य चाहेगा, जहाँ कि अब तक ब्रिटेन, नीदरलैण्ड (हॉलैण्ड), फ्राँस और अमेरिका डटे हुए हैं। जापान ने ‘एशिया- एशियाईयों के लिए’ का नारा भी दे दिया है।

युद्ध की आशंका को देखते हुए अमेरिका जून 40 में ही अपना जंगी बेड़ा हवाई द्वीप समूह के ‘पर्ल हार्बर’ में तैनात कर चुका है।

जापान जानता है कि दक्षिण-पूर्वी एशिया पर आधिपत्य जमाने के लिए सबसे पहले इस बेड़े को ध्वस्त करना होगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति रूज़वेल्ट एक ओर जापानी सम्राट हिरोहितो (जापानियों के लिए- शोवा, ‘शान्ति के प्रकाशपुँज’) के साथ समझौते की कोशिश कर रहे हैं; तो दूसरी ओर, बिना विश्वयुद्ध में शामिल हुए ‘मित्र राष्ट्र’ की (धन तथा हथियारों से) मदद भी कर रहे हैं।

अमेरिकी जनता अपने देश के युद्ध में शामिल होने या न होने के मामले में दो भागों में बँट गयी है। एक पक्ष मानता है कि ब्रिटेन को अकेले नाज़ियों के रहमोकरम पर नहीं छोड़ना चाहिए तथा दूसरा पक्ष युद्ध को अमेरीका से दूर ही रखना चाहता है।

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7 दिसम्बर 1941।

सुबह 06:00 बजे।

हवाई द्वीप समूह के ओहाऊ से 230 मील उत्तर।

एडमिरल नागुमो के नेतृत्व में छह जापानी विमानवाहक पोतों से 183 विमान उड़ान भरते हैं- इनके निशाने पर है- पर्ल हार्बर में तैनात अमेरिकी प्रशान्त बेड़ा।

07:02।

पर्ल हार्बर के राडार पर इन विमानों को देखकर अमेरिकी बी-17 विमान समझा जाता है, जो पश्चिम से आनेवाले थे। हमले की पूर्व चेतावनी न होने के कारण पर्ल-हार्बर में ‘सतर्कता’ की स्थिति नहीं है; ऊपर से आज रविवार है, माहौल अलसाया हुआ है।

07:15 पर 167 विमानों का दूसरा जत्था उड़ान भरता है।

(अमेरिकियों ने हालाँकि 6 दिसम्बर को ही एक जापानी कूट सन्देश को पकड़कर दक्षिण-पूर्व एशिया में हमले का अनुमान लगा लिया है। 7 को एक और सन्देश को पकड़ा जाता है, जिसमें जापानी दूतावास को दिन में एक बजे अमेरिका के साथ राजनयिक सम्बन्ध तोड़ने के लिए कहा गया है। (अमेरीका में दिन में एक बजे यानि पर्ल हार्बर में सुबह के सात बजे!) हवाई के साथ रेडियो-सम्पर्क खराब है, व्यवसायिक टेलीग्राफ के सहारे प्रशान्त बेड़े पर हमले की चेतावनी भेजी जाती है, जो दोपहर में ओहाऊ मुख्यालय पहुँचती है, हमले के चार घण्टे बाद!)

07:53।

उड़ान कमाण्डर मित्सुओ फुचिदा के तोरा! तोरा! तोरा! (शेर! शेर! शेर!) की ललकार के साथ 51 ‘वाल’ डाईव बॉम्बर, 40 ‘केट’ टॉरपीडो बॉम्बर, 50 हाई लेवल बॉम्बर और 42 ‘ज़ीरो’ बॉम्बर पर्ल हार्बर पर बमवर्षा शुरु कर देते हैं।

8 बजकर 55 मिनट पर दूसरा जत्था बमबारी शुरु करता है।

9 बजकर 45 मिनट तक बमवर्षा चलती है।

9:55 तक धमाके शान्त हो जाते हैं।

दोपहर 13:00 बजे तक छहों जापानी विमानवाही पोत टोक्यो की ओर लौट रहे होते हैं।

पर्ल हार्बर में 8 जंगी जहाजों को नुकसान पहुँचता है, जिनमें 5 डूब जाते हैं। 3 लाईट क्रूजर, 3 डेस्ट्रॉयर, 1 विमानभेदी प्रशिक्षण पोत, 1 ‘माईन’ बिछाने वाला जहाज तथा 1 अन्य जहाज क्षतिग्रस्त होता है। 188 विमान खत्म हो जाते हैं, 155 विमानों को नुकसान पहुँचता है। 2,402 सैनिक, 57 नागरिक इस हमले में मारे जाते हैं और 1,247 सैनिक तथा 35 नागरिक घायल होते हैं। अमेरिका के तीनों विमानवाही पोत (लेक्सिंग्टॉन, एण्टरप्राईज और सारातोगा), पनडुब्बियाँ तथा तेल के भण्डार बच जाते हैं।

जापान अपने 27 विमान और 5 मिडगेट पनडुब्बी खोता है; उसके 55 वायुसैनिक तथा 9 नौसैनिक मारे जाते हैं, और एक पनडुब्बी को पकड़ लिया जाता है।

तीन घण्टों के बाद जापानी विमान फिलीपीन्स के अमेरिकी ठिकानों पर दिन भर बमवर्षा करते हैं।

पश्चिम की ओर आगे, हाँग-काँग, मलेशिया और थाईलैण्ड पर भी हमले होते हैं।

यह हमला एक झटके में एक ओर जापान को पूर्वी तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया का बादशाह बना देता है, और दूसरी ओर अमेरिकी जनता को अपने राष्ट्रपति के पीछे एकजुट कर देता है।

अगले दिन 8 दिसम्बर को अमेरिका और ब्रिटेन जापान के खिलाफ युद्ध की घोषणा करते हैं।

11 दिसम्बर को इटली और जर्मनी अमेरिका के खिलाफ युद्ध की घोषणा करते हैं।

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मई 42 में, जब जर्मनी में हिटलर नेताजी को जापान के सहयोग से भारत को आजाद कराने का मशविरा दे रहे हैं, तब जापान सागर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक जापान की तूती बोल रही है।