1.6 कोलकाता से काबुल

शिशिर बोस की कार बरारी आकर रुकती है।

शिशिर ने पहले ही बर्द्धमान तक कार चलाकर लाँग ड्राईव का अभ्यास कर लिया है। रास्ते में कोई परेशानी नहीं हुई- सिवाय एक जंगली इलाके में भैंसों का झुण्ड सामने आ गया था, तब कार की ब्रेक ने सही काम किया। 

वहाँ शिशिर अपने बड़े भाई अशोक के घर रुकते हैं। अगली सुबह वहाँ से उनके ‘पठान मेहमान’ अकेले पैदल घर से निकलते हैं (ताकि नौकरों को सन्देह न हो)। बाद में पीछे से शिशिर और उनके भैया-भाभी आकर उन्हें फिर कार में बैठा लेते हैं।

सभी गोमो पहुँचते हैं। आधी रात के बाद खुलने वाली दिल्ली-कालका मेल के लिए पहले दर्जे का टिकट कटाकर नेताजी उसमें बैठ जाते हैं।

दिल्ली से फ्रंटियर मेल पकड़कर नेताजी 19 जनवरी को पेशावर छावनी स्टेशन पर उतरते हैं। मियाँ अकबर शाह, मोहम्मद शाह और भगतराम उन्हें लेकर ताँगेवाले द्वारा सुझाये एक अच्छे मुस्लिम होटल में पहुँचते हैं।

बाद में एक और भरोसेमन्द साथी अबद खान के घर नेताजी को ठहराया जाता है। अबद खान अफगानी पठानों के रीति-रिवाजों के बारे में नेताजी को जानकारी देते हैं- वे उन इलाकों में जा चुके हैं।

26 जनवरी को नेताजी मोहम्मद शाह, भगतराम और एक मार्गदर्शक के साथ कार में अफ्रीदी कबीले की सीमा की ओर रवाना होते हैं।

सीमा के बाद पैदल यात्रा प्रारम्भ होती है। आंशिक रुप से बर्फ से ढके पहाड़ों पर चलते हुए 28 को वे पहले अफगानिस्तानी गाँव में पहुँचते हैं।

यहाँ से कुछ दूर तक खच्चरों की सवारी करते हुए और बाद में चायपत्ती की बोरियों से लदे एक ट्रक में हिचकोले खाते हुए सभी रात तक जलालाबाद पहुँचते हैं।

जलालाबाद से 30 को काफिला फिर चलता है और पहले ताँगे की और बाद में ट्रक की सवारी करते हुए 31 को काबुल पहुँच जाता है।